World Most Expensive Rose :जब भी फूलों की बात आती है, तो शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जिसे फूलों से परहेज हो। फूल हर किसी को पंसद होते है। किसी व्यक्ति से अपने प्यार का इजहार करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका फूलों की ही मानी जाती है। दुनिया में गुलाब के फूल कई रंगों और किस्मों में पाए जाते है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे ही गुलाब (World Most Expensive Rose) के बारे में बताने जा रहे है जो दुनिया में सबसे मंहगा फूल है। इस गुलाब की कीमत तो किसी मसर्डिज गाड़ी से भी ज्यादा है। तो आइए जानते है इस गुलाब के बारे में :—
नाम है खास
इस गुलाब के फूल का नाम ‘जूलियट रोज’ है। जो दुनिया में सभी फूलों में सबसे मंहगा है। आपने अभी तक कई गुलाब खरीदे होंगे। जिनकी कीमत ज्यादा से ज्यादा 100,200 या 2000 के आस पास होगी। लेकिन ‘जूलियट रोज’ को खरीदना हर किसी के बस की बात नहीं है। क्योंकि इसके एक गुलाब की कीमत तकरीबन 90 करोड़ रूपए के आस पास है। जानकारी के अनुसार इस गुलाब की खेती करना काफी मुश्किल होता है। वहीं इस फूल की खुशबू बहुत हल्की और परफ्यूम जैसी होती है। जो इसे दूसरों फूलों से काफी अलग बनाती है।
खिलने में लगे 15 साल
डेविड ऑस्टिन वही व्यक्ति थे, जिन्होंने पहली बार जूलियट गुलाब की खेती की शुरूआत की थी। उन्होंने इस गुलाब को कुछ अलग तरीके से उगाने का प्रयास किया था। कहा जाता है कि डेविड ऑस्टिन ने कई तरह के गुलाबों की किस्मों को मिलाकर एक नई किस्म क फूल तैयार किया था। वहीं इस फूल को उगाने में उन्हें 15 सालों का समय लगा। ऑस्टिन ने इस गुलाब का नाम विलियम शेक्सपियर के नाटक रोमियो जूलियट से प्रेरित होकर रखा था। इस गुलाब को विकसित करने में करीबन 5 मिलियन डॉलर का खर्चा आया था। वहीं 2006 में पहली बार जूलियट गुलाब को दुनिया के सामने लाया गया था। तब इसकी कीमत 90 करोड़ रखी गई थी। हालांकि समय के साथ इस फूल की कीमत में भी थोड़ी गिरावट देखी गई है।
दुनिया के कुछ और मंहगे फूल
दुनिया में जूलियट गुलाब के अलावा भी कई ऐसे फूल है जिनकी कीमत लाखों—करोड़ो में है। जिसमें कुडुपल फ्लावर गुलाब भी शामिल है। यह फूल साल में एक बार और सिर्फ एक ही रात के लिए खिलता है। लोग इसे भूतिया फूल भी कहते है और यह केवल श्रीलंका में ही पाया जाता है। इसके अलावा शेन्ज़ेन नोंगके आर्किड नाम के इस गुलाब की खासियत यह है कि यह फूल 4—5 साल में एक बार खिलता है और इसकी कीमत लाखों में है। शेन्ज़ेन नोंगके यूनिवर्सिटी में चीनी कृषि वैज्ञानिकों द्वारा 8 सालों की कड़ी मेहनत के बाद 2005 में इसे दुनिया के सामने लाया गया था। 2005 में हुई नीलामी में 290,000 डॉलर में खरीदा गया था।
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